विश्लेषण: आंकड़े क्या कहते हैं?
1951 में देश में हिन्दू आबादी लगभग 30 करोड़ थी, जो 2011 तक बढ़कर 96 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जबकि देश की कुल जनसंख्या 36 करोड़ से 121 करोड़ तक पहुँच गई. जनसंख्या के प्रतिशत के हिसाब से हिन्दू आबादी में करीब 7-8% की गिरावट (84% से 77%) जरूर आई है, लेकिन कुल संख्या में निरंतर वृद्धि ही हुई है.
ऐतिहासिक घटनाएं और मिथक:
आक्रमणों और उनके असर की ऐतिहासिकता से इनकार नहीं किया जा सकता, और मध्यकाल में कई बार बड़े पैमाने पर सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन हुए. लेकिन इतनी बड़ी आबादी घटने का कोई लिखित, प्रमाणिक या वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है; न तो मुगल काल में और न ही ब्रिटिश या उससे पहले.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य:
आज के संदर्भ में धार्मिक जनसंख्या घट-बढ़ पर संवाद जरूरी है, लेकिन तथ्यों के आधार पर। हिन्दू आबादी में प्रतिशत के तौर पर अंतर जरूर आया है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, शहरीकरण और प्रसूति दर जैसे कारकों के बदलाव की वजह से है, न कि केवल ज़बरदस्ती या हिंसा के कारण.
निष्कर्ष:
इस विषय पर चर्चा करते समय भावनाओं से अधिक तथ्य, और ऐतिहासिकता से ज्यादा सम-सामयिकता को प्राथमिकता दें। भारत की विविधता उसकी ताकत है, और समाज को सांप्रदायिक संख्याओं की बजाय साझा संस्कृति और समावेश की ओर देखना चाहिए.
इसलिए, सिर्फ जनसंख्या आंकड़ों और इतिहास का हवाला देकर बड़े पैमाने पर किसी धर्म विशेष की जनसंख्या हानि का दावा करना तथ्यों के अनुरूप नहीं है.